गुरुवार, 8 जनवरी 2009

सच को स्वीकार करना आसान नहीं है

सच को स्वीकार करना आसान तो नहीं है
जीने का हक़ हमारा अनुदान तो नहीं है
इस पर जो हो सियासत कब तक सहेंगे हम सब
आयेगा एक मसीहा पैगाम तो नहीं है
कश्मीर को ही देखो सदियों से जो हमारा
टुकडों में बंट गया और करता है वो गुजारा
कहते हैं जिसको जन्नत जोखिम भरा सफर है
सच तो यही है जैसे खोजे नया सहारा
कितना हुआ पलायन अनुमान भी नहीं है
सच को स्वीकार करना आसान तो नहीं है
वह पाक जो बना है नापाक हैं इरादे
होता नहीं भरोसा कितने ही कर ले वादे
आगे निकल गया वह आतंक के सफर में
वापस वो आए कैसे बदले सभी इरादे
परेसाऊ आज सब पर समाधान भी नहीं है
सच को स्वीकार करना आसान तो नहीं है
अजमल कसाब कब से करता रहा है मिन्नत
अपना वतन था प्यारा नहीं जाना और जन्नत
हैवान क्यों बनाया अच्छे भले थे घर में
घातक बनाया जालिम जीवन बना है जहमत
यह खून है वहीँ का पहचान तो मिली है
सच को स्वीकार करना आसान तो नहीं है
मजबूर हम नहीं पर मौका दिया है सोचो
मरहम लगाना सीखो जख्मों को न खरोचों
कातिल कहाँ कहाँ हैं तुमको तो सब पता है
सच को स्वीकार कर लो ईमान को न बेचो
बन कर रहो पड़ोसी समाधान तो यही है
सच को स्वीकार करना आसन भी तभी है

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