गुरुवार, 17 जून 2010

नक्सलवाद

नक्सलवाद
नासमझों की नादानी
जो करते हैं अपनी मनमानी
जिससे बदल रही है भारत की अपनी कहानी
जिसपर उन्हें एक दिन पछताना होगा ||
नक्सलवाद
सभ्य समाज पर एक करारा ब्यंग
जो बना रहा है हमें और आपको कटी पतंग
बेगाने बनते जा रहे हैं अपने ही अंग
उन्हें अपना बनाना होगा ||
नक्सलवाद
बन्दुक के बल पर देती है प्रभुताई
बिना परिश्रम के करवाती है कमाई
बन बैठे हैं अपने हीं घर में कितने बलवाई
उन्हें कैसे भी हो फिर से समझाना होगा ||
नक्सलवाद
पूरब से आई एक आंधी जिसने
हिंसा से अपनी समा बाँधी
भूल गए जो गौतम और गांधी
आज उन्हें फिर से याद दिलाना होगा ||

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