शुक्रवार, 10 जून 2011

अपना घर परदेश बना दो

यह रचना उन नेताओं को समर्पित है जो देश को अपनी जागीर और सरकार को अपनी संपत्ति समझते हैं साथ ही घोटाला और भ्रष्टाचार को अपना धर्म मान बैठे हैं प्रस्तुत है 'अपना घर परदेश बना दो ' :-----

हे नेता हड़ताल करा दो
काम बंद और जाम करा दो
तुम्हें नहीं भूलेगा भारत
कशी मथुरा कृष्ण मिटा दो
तुम हो ज्ञानी तुम हो ज्ञाता
भारत के हो भाग्य विधाता
चलो बढाते जाति बंधन
अब तो अपना ओट हटा दो
गठबंधन में धाक तुम्हारी
मिलेगी निश्चय अगली बारी
शोर मचाना तुमसे सिखा
संसद में तकरार करा दो
हे नेता हथियार गिरा दो
संग संग ही जंग करा दो
शान्ति था पैगाम हमारा
हिंसा की तुम हवा बहा दो
कहीं जाती कहीं धर्म के नाम पर
जगह जगह दंगा करवा दो
समता समता जपते जपते
समता को श्मशान भिजा दो
काम तुम्हारा बन जाएगा
आपस में हीं ठन जाएगा
अर्थ निति की आड़ में चल कर
जनता को अब जगह दिखा दो
नेता tum आदर्श हमारे
हम तो सेवक सदा तुम्हारे
सुबह सवेरे नाम जपेंगे
एक अदद खोखा दिलवा दो
हे नेता मदिरा पिलवा दो
बर्गर पिज्जा हमें खिला दो
रुखी रोटी बहुत हीं खाए
केटंकी कुछ और खुला दो
हे नेता इतिहास बना दो
अपने गुण उसमें लिखवा दो
कितने पैसे बना चुके हो
जनता को अब आज बता दो
आजादी पड़ गई पुरानी
नई रवानी इसे दिला दो
महंगाई को और बढ़ा कर
अपना घर परदेश बना दो
अपना घर परदेश बना दो

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