शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

बदल भी डालो यह संसार



कन्यां तुम कमजोर नहीं क्यों सहन करोगी अत्याचार ?
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 
तुम जननी घर घर की ज्योति जीवन देने वाली हो , 
तुम बहना , बेटी भी तुम तो साथ निभाने वाली हो 
शर्म से आँखें झुक जाती हैं ह्रदय बिदारक दृश्यों से 
तुम हीं  सदा से इस धरती पर समता लाने वाली हो ।।
 भूल गई तुम अपनी शक्ति बढ़ने लगा है पापाचार 
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 

मंदिर में मूरत  की पूजा लगता महज दिखावा है 
मन में जिनके पाप भरा वे कहते क्या पहनावा है 
बातों की बतकही बनाने मीडिया में कितने आ बैठे 
चुप चुप अब तक मनमोहन जी इसका एक पछतावा है ।।
बेशक अपना या हो पराया करना होगा अब प्रतिकार 
बन कर काली आओ फिर से बदल भी डालो यह संसार ।। 

और न आंसू बहने दो अब उठा लो घुटनों से चेहरा 
जला दो दानव दल को पल में और न आँचल को लहरा 
लिख लो अपनी नई  कहानी बन कर झांसी की रानी 
रोग लगा जब इस समाज को डाल  दो इस पर एक पहरा ।।
हे दुर्गा दुर्मति शमन  कर सिखा दो सबको सद्व्यवहार 
हे काली मतवाली बन कर बदल भी डालो यह संसार ।। 

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

नए अछूत

नए अछूत 

बनिया ब्राह्मण राजपूत 
राजनीति के नए अछूत 
उनकी किसको है परवाह 
चाहे निकले मुंह से आह 
लोकतंत्र में दोयम दर्जा 
चुका रहे बरसों का कर्जा 
भूल हुई क्या कहो हमारी 
मारी गई है मति तुम्हारी 
आरक्षण एक हद तक अच्छा 
लेना उसको बन कर सच्चा 
लेना उसको बन कर सच्चा 

रविवार, 9 दिसंबर 2012

गोरा काला

तन के गोरे चले गए, कर गए मन को काला ।
एक दूजे को कोस रहे हम, पडा अकल पर ताला ।।

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012


 एफ . डी . आई 

एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई 
देशी हो या परदेशी तुम 
अपनी हो या कोई पराई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई ।

संसद में जब हुआ हंगामा 
सबने देखा सबका ड्रामा 
मनमोहन जी जित गए पर 
बन नहीं पाए ;यहाँ ओबामा 
बड़े भयंकर कहते हैं सब 
ऐसी है तेरी परछाई ।
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई ।

सकते में सारे व्यापारी 
अन्धकार में सब अधिकारी 
पक्ष बिपक्ष समझ ना आये 
दिखती है  सबकी लाचारी 
कहते  हैं आफत की पुडिया 
दुनियाँ  भर  में हो दुखदाई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
बोलो बोलो कहाँ से आई 

आओ अब तो राह बनी है 
पाठक को परवाह नहीं है 
हम सब हैं माटी के पुतले 
दर्द बहुत  पर आह नहीं है 
आर्थिक मोर्चा फतह करो तुम 
समझो लेकिन पीर पराई 
एफ . डी . आई . एफ . डी . आई . 
न जानें तुम  कहाँ से आई 
देसी हो या परदेसी पर 
बन कर रहना अपनी ताई ।।

रविवार, 2 दिसंबर 2012


खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल
आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल
क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर
राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल
दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके
पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के
राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले
कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के
शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?
जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो
हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं
होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो
परदेशी  पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल 

आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल 

क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर

राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल

दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके 

पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के 

राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले 

कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के 

शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो 

हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं 

होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो 

परदेशी  पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

असमंजस में दिल्ली

जर्जर भवन बनी अब कांग्रेस हिलने लगे हैं खम्भे 

भ्रष्टाचारी  घास  उगे हैं कितने लम्बे लम्बे  ? 
टपक  रहा छत उखड़े प्लास्टर डर पैदा करते हैं 
करो  प्रार्थना   मिलकर सारे जय जननी जगदम्बे ।।
कड़ कड़ करते हैं किवाड़  जब उनको कोई खोले 
घर वाले बेखबर पड़े सब कितना कोई बोले 
उचल रहे कुछ चूहे चूं चूं खोद रहे जो जड़ को 
राजा बाजा बजा गए अब नैया डग मग डोले ।।
सारा कुनबा पडा उसी में क्या करे सोनियाँ गांधी ?
किया मरम्मत बार बार आशा की डोरी बाँधी  
लेकिन रिश्वत के छींटों नें किया दीवारें जर्जर 
ऊपर से दिग्विजय हमारे चले चलाने आंधी ।।
मनमोहन चुपचाप सदा से महिमा बड़ी निराली 
नीलकंठ बन  बैठे वे अब पीकर विष की प्याली 
कोलब्लाक आबंटन हो या टूजी  बड़ा घोटाला 
उनका तो कुछ हुआ नहीं पर अपना पॉकेट खाली ।।
तारनहार विचार किया तो मिल गई उनको माया 
आ बैठी उस छत के ऊपर लेकर भरकम काया 
बांध लिया एक और मुलायम हिलते डुलते खम्भे से 
भारत माता क्या कर लेगी कहाँ मिलेगी छाया ?
राहुल बाबा के कंधे पर टिका दिया है बल्ली 
एक हाथ में डंडा जिनके एक हाँथ में गिल्ली 
बोल रहे बडबोले जैसे आगम निगम न जाने 
कर्णधार कहते सब उनको असमंजस में दिल्ली ।।  

सोमवार, 25 जून 2012

स्वदेश 
उलीच गम को भींच आँखें खींच  सर  संधान कर 
तान लो धन्वा पुरानी हाथ रख लो म्यान पर 
चल पड़ो लेकर ध्वजा अब साज सज्जा साथ में 
बाँध लो सर पर कफ़न उसे मांग लो सौगात में ।।
आ गया तूफ़ान फिरंगी रूप ले व्यापार का 
डालता घेरा सुनहरा शर्त माया जाल का 
जाग जाओ चल पड़ो अब झेलने उस दंश को 
सामना कर कर के सम्हालो अब नहीं बिलम्ब हो 
आज न्रीप शत्रु बना है अपने हिन् संतान की 
घर के बर्तन बेच कर नहीं सोचता सम्मान की 
घर के अन्दर घर के बाहर हर तरफ जंजाल है 
ब्याध आया जाल लेकर हाल अब बेहाल है 
भ्रष्ट बन जब खेलते कभी सोचते हो देश का 
आने को है फिर गुलामी सोच उस संताप का 
स्वस्थ बन नहीं शोक कर सोचो नहीं जो कल किया 
चल पड़ो बन कर स्वदेशी राग अपना लो नया 
हे हिमालय सोच ऊँचा रहे मस्तक तेरा 
मत बहा आँसू निरंतर हिम जमने दे जरा 
आयेगा तेरा युधिष्ठिर छोड़ कर वह स्वर्ग को 
साथ में लाएगा अपने अनुज अर्जुन भीम को 
हे नरेश मत कर क्लेश तुम भी उठा लो व्रत नया 
मत बुला आहात जो कर दे भेद को समझो जरा 
आते हैं दामन को थामे बैठ जाते बज्र  बन 
बज्र का सीना बना लो कष्ट को श लेंगे हम 
अपने संसाधन सहेजो काम बनता जाएगा 
तोड़ दो जंजीर आर्थिक देश बढ़ता जाएगा ।।

रविवार, 13 मई 2012

गली का दर्द



गली नाम की चीज 
निरंतर
कटती और बंटती रहती है 
बदले हालत में 
बेमौत मरती रहती है 
गाँव हो या शहर 
गलियों पर होता  रहता है कहर 
 उसकी चीख 
सुनी अनसुनी कर 
अड़े रहते हैं 
अपने अधिकार पर ||
गली बेचारी 
अपने आप में 
सिकुड़ती सहमती रहती है 
परन्तु सोचती है 
अपनी सम्पूर्णता के लिए 
तड़पती  है 
अपनी सम्पन्नता के लिए  
बिपन्न्ता की निशानियाँ 
नालियाँ
हरदम  बजबजाती रहती हैं 
कोई छोड़ जाता है वहाँ पर 
कूड़ा 
बना जाता है वहाँ पर 
एक गड्ढा 
जैसे हो फोड़ा 
चौड़ी गलियाँ भी 
संकरी हो जाती हैं 
ऐसे में गलियाँ 
रोती और घबराती हैं 
कभी कोई बाड़ लगाता  है
फूल और पौधे लगाने के लिए 
कोई दिवार कड़ी करजाता है 
अधिकार जताने के लिए 
उलझ जाते हैं लोग 
और कभी कपडे   
नाम होता है 
उस गली का 
छोड़ जाते हैं उसे 
बेबस
रोने और शर्माने के लिए ||

सोमवार, 7 मई 2012


     माँ 

आकाश जैसा विस्तृत
मखमल जैसा कोमल
पकड़ कर चलना सिखा था
जिसका आँचल
सोचता हूँ याद कर
ममता के उस ताने बाने को
बाँध लूँ छोटी सी गठरी
कविता की
माँ को उपहार देने के लिए
याद आते ही आँचल का कोना
खिल उठता है यह दिल खिलौना
जिसके सहारे बड़ा हुआ था
याद है बचपन के वे दिन
जब माँ ही सच थी , शाश्वत थी
और उसकी हर सीख थी
एक पत्थर की लकीर
ओस भरी रातों में ठंढ से ठिठुरता था जब
माँ की आँचल में छिप जाता था तब
बिना रजाई के भी मिल जाती थी गर्माहट
और
पल भर में गहरी नींद में सो जाता था मैं
घर के बाहर कितने भी बहते थे आंसू
आँचल की ओट मिलते हीं
खिल उठती थी होठों की मुस्कान
कभी चपत भी खाया था
मगर होते थे मीठे
यादें ताज़ी हैं उनकी ,
कदम दर कदम
याद है
जब मैं निकला था पहली बार
घर से
लम्बे प्रवास के लिए
माँ की ममता आँखों से निकल कर
आँचल को भिगो रही थी
और मैं
चल पडा था भारी मन से
उसके हाथों की बनी रोटी साथ लिए
खोजता हूँ माँ को आज ,
उसी पुराने घर में जाकर
खंडहर सा दिखता है वह ,
उसके वहां न मिलने पर
चला आता हूँ वापस खाली हाथ
मायूस मगर यादों को समेटे हुए
कोसता हूँ नियति के उन नियमों को
जिसने दूर कर दिया मुझे मेरी माँ से
मगर
वह तो सदा हीं मेरे पास है
मेरे मन में , अंतर्मन में , और कण कण में
                सपना मनी मनी

अपना सपना मनी मनी  , कसे भी बन जाएँ धनी
हाथ पाँव हिलने न पाए जीवन में हो हनी हनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी 
बिन बादल के बरसे पानी मिले लाभ पर नहीं हो हानी
बिन मांगे सब कुछ हो हाजिर काम बने पर सदा जुबानी 
आगे पीछे लगे हों सेवक खुले भाग्य भी देकर दस्तक 
पासों की अम्बार लगी हो दुनिया बोले राजा रानी 
राम करे ऐसा हो जाये और नहीं हो देर घनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी

हाथों में सोने के छल्ले खाएं हम हर दिन रसगुल्ले 
जो सोचें पल में मिल जाये जीवन भर हो बल्ले बल्ले 
सेहरा भी बंध जाये सर पर वो भी ऐसा सबसे हट कर 
आलिशान महल मिल जाये रहलें उसमें खुल्ले खुल्ले 
चांदी की चौखट हो घर में वो भी एकदम नई बनी 
अपना सपना मनी मनी , अपना सपना मनी मनी

लेकन सब आसन नहीं है अपनी तो पहचान नहीं है 
जीवन जंग बना है जैसे जिसमें तो आराम नहीं है 
मेहनत के बल पर जो पाओ उसमें अपनी सभी बनाओ 
अथक परिश्रम करो जो प्यारे तन मिटटी से सनी सनी 
सपना सच हो जाएगा और खेलोगे  तुम मनी मनी 
सपना सच हो जाएगा और खेलोगे  तुम मनी मनी 

रविवार, 6 मई 2012

                 आजादी 

कूड़े की क्या कहें कहानी क्या उसके  अरमान 

कूड़ा  तो   कूड़ा   मगर     कूड़ा    है    शैतान 

कूड़ा है शैतान  शरारत  करता है  हम  सब से 

हव़ा चले तो सड़क पर आये या गुजरे ऊपर से 

कभी कार के शीशे पर , जाम करे कभी चक्का 

सड़क पर कूड़ा फेंके कोई लगता है तब धक्का 

कूड़ेदान  में  फेंको  कूड़ा   होगी  क्या  बर्बादी 

मच्छर भी कंट्रोल में होंगे होगी तब  आजादी || 

शनिवार, 5 मई 2012

मन  से  कभी न  हारो

कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 
डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 
हँस  हँस  के हार सह लो तो जीत   है हमारी  
काली घटा घिरी तो उस पर भी रंग  डारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

रंगीन  सारी दुनिया आयाम  इतने सारे 
बाहर तो निकलो देखो सुन्दर सभी नज़ारे 
फूलों की क्यारियाँ है काँटों की महफ़िलें हैं 
फौलाद फूल  बन कर आतुर तुम्हें पुकारे 
राहों में धुल  फैले उनपर फुहार मारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

आओ  गले लगा लें खुशियाँ जो मिल   रही हैं 
स्वागत करो सभी की कलियाँ जो खिल रही है 
अरमान  होंगे पुरे जो भी सजाओ  सपने 
साहस  का साथ  जो मुफ्त मिल   रही है 
अब  जीत  है तुम्हारी    मन  से  कभी न  हारो 
कल  का नहीं भरोसा जीना है आज  यारों 

डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 
डर डर  के जीना छोडो  डर  को डरा के मारो 

बुधवार, 2 मई 2012




                Nyaa Prabhaat

मन प्रशन्न अत्यंत है देखा नया प्रभात

जागने लगी है लालसा कट गई काली रात

सागर तट मुंबई बसे किसकी होगी आज

अन अधिकृत रहते सभी कहने लगा है राज



मंगलवार, 1 मई 2012

          शराबी 

अद्धे से श्रद्धा किया पौवे से जब प्रेम 
परदेशी देसी मिले लेकिन शाम की टेम
लेकिन शाम की टेम टमाटर खीरा का हो चखना 
साथ में सोडा , ठंढा पानी बोतल लाकर रखना 
पास ही पाकेट भी सुटके का जम जाये जो महफ़िल 
कुछ दिन या कुछ वर्षों ही मिल जायेगी मंजिल 
किसी सड़क पर होगा एक दिन  अपना नया नजारा 
 बिखरे बाल व्यस्त सब कपडे जैसे कोई बेचारा 
एक एक कर तन में होगी हर दिन नई बिमारी 
लोग कहेंगे बड़े अदब से देखो विपदा ने मारी 
राशन पानी नहीं बचेंगे होगा घर में फांका  
माथे पर जो चोट लगे तो लगेगा उस पर टांका 
समय से पहले सम्हल गया तो होगी नहीं खराबी 
वर्ना बेजुबान बोलेंगे आया एक शराबी || 



शनिवार, 28 अप्रैल 2012

फलसफा 

जीवन का जो फलसफा लगता है अब सफा सफा 
जीवन धन अनमोल है लेकिन सबके सब हैं खफा खफा 

उत्तम खेती माध्यम बान शिक्षा सबका एक निदान 
सदियों से चलता आया जो सबने माना इसे विधान 
लेकिन आज नहीं कुछ ऐसा सबके ऊपर आया पैसा 
रिश्वतखोरी या हो चोरी सबने माना इसे प्रधान 
दान धर्म की बात न करना मिले नहीं अब कहीं वफ़ा 
जीवन का जो फलसफा लगता है अब सफा सफा 

सादा जीवन उच्च विचार करना सबसे सद्व्यवहार 
बचपन से सुनता आया पर बदल गया सब फिर एक बार 
दकियानूसी सोच मिलेगी भड़कीले अब पहनावा 
कहते सब कुछ बदल रहा तो बदलो यह संसार 
आँखों में अब नहीं है पानी करते सब कुछ रफा दफा 
जीवन का जो फलसफा लगता है अब सफा सफा 

धमा चौकड़ी होड़ लगी है जैसे कोई मोड़ नहीं है 
कल का आलम कैसा होगा साथ सत्य भी छोड़ रही है 
मंत्र एक अपनाना होगा वापस घर को आना होगा 
संतोषम परमं सुख पाना मन के अन्दर शोर यही है 
जो भी इसको अपना लेगा करके सब कुछ रफा दफा 
जीवन धन मिल जाएगा और नहीं रहेगा खफा खफा 

 जीवन का जो फलसफा होगा फिर न रफा दफा 
जीवन का जो फलसफा होगा फिर न रफा दफा 


गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

खुल कर जी लो यार 

मरने से डरने वाके क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हर सफ़र डर कर गुजारा कहते फिरते शेर दिल 

आ गई बिपदा जरा सी खोजते चूहे का बिल 

क्या हुआ हम जो नहीं कोई तो होगा मंच पर

राह मे मिल जाए दुश्मन उससे भी हँस हँस कर मिल

दुश्मनों से दुश्मनी कर ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

हम हमारे में डूबे पर कहते हैं हम आपके 

पुण्य का परचम हाथों में काम करते पाप के 

राम के हीं नाम पर कितनों ने करतब कर डाले 

कर्म अपना छोड़ कर क्यों दंश झेलें शाप के 

शाम जो ढल जाएगी क्या ख़ाक जीवन जी सकेंगे ?
जीवन है अमृत का प्याला  खाक अमृत पी सकेंगे ?

जीना है जो जीवन पलभर जी भर कर जी लेने दो
पीना है अमृत  का प्याला जी भर कर पी लेने दो 

हों नहीं मदहोश लेकिन कल की सोचें आज हीं 

होश हो अब हम सफ़र पर जोश भी भर लेने दो 

परदेशी पाठक कहता है खुल कर जी लो यार ।
काम यहाँ कर जाओ ऐसे जाने यह संसार ।।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012


काश की हम पंछी बन जाते

काश की हम पंछी बन जाते
नील गगन में उड़ते जाते
सीमा सरहद कुछ न होता
हँसते गाते बस मुस्काते
काश की हम पंछी बन जाते

कुदरत का अनमोल खजाना
मकसद होता उसे सजाना
शाम सुहानी सबकी होती
गुन गुन गाते न घबराते
काश की हम पंछी बन जाते

बगिया होती सबको प्यारी
सबके सब होते अधिकारी
करते चुहल कभी आपस में
अपनों को हंस कर अपनाते
काश की हम पंछी बन जाते

अपनी सबको आज पड़ी है
अनचाही दिवार खड़ी है 

इतने ऊँचे पहुँच नहीं पर ,
पर होते तो पार कराते
काश की हम पंछी बन जाते
कड़वा करेला हूँ 

मैंने तो मांगा था बस टेबल का एक कोना 
ये नहीं था कहीं से भी चांदी का या फिर सोना 
ऊपर से नहीं था यह  कहीं से भी आपका 
मगर क्या कर सकता हूँ मैं उस शाप का 
जिसे झेल रहा हूँ बस झेलने के लिए 
क्या जीवन ही बना है बस खेलने के लिए ?
वाणी से तो आप मधुर हैं पर क्या करें व्यवहार का 
जवाब नहीं है अपने अनोखे सरकार का 
रौनक होती होगी महफ़िल में मगर मैं अकेला हूँ 
 माफ़ करना मेरे मालिक मैं तो कड़वा करेला हूँ ।।
बदले जो व्यवहार 

सबकी अपनी किश्मत है सबकी एक कहानी
लेकिन सब अनमोल हैं सबके सब गुनखानी
सबके सब गुनखानी खेल विधाता की है न्यारी
कोई तो संतुष्ट स्वयं  में कोई सदा दुखारी
दीन नहीं वह भी  मगर जाने यह संसार 
सूरज सा चमके अगर बदले जो व्यवहार ।। 

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

आजादी का क्या मतलब इन नेताओं को

आजादी का क्या मतलब है , पूछो इन नेताओं से
देश धर्म को  भूल गए जो , सत्ता के क्रेताओं से
लूट रहे हैं कदम कदम पर जनता में बदहाली है
बाँट रहे हैं हर दिन हर पल पाकेट सबका खाली है
इनकी करनी इतनी काली शुभ चिन्तक बतलाते हैं
भडकाते हैं हर दिन ज्वाला हरदम हमें सताते हैं
नहीं अछूता बचा है कोई सत्ता के क्रेताओं से
आजादी का क्या मतलब है पूछो इन नेताओं से


बढती जाती है महंगाई बंद सभी की आँखें हैं 


शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

आगामी परीक्षा के लिए शुभ कामनाएँ

...सफलता मिले जो तुम्हें मन को भाये
......जीवन में खुशियाँ हीं खुशियाँ समाये
...........प्रभु की कृपा से बढ़ो आगे हर दिन
...............परीक्षा हो ऐसी जो अव्वल बनाए
बेस्ट ऑफ़ लक फॉर योर एक्जाम्स

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

दुनियाँ करे प्रणाम

सपने हों पुरे सभी मिले सफलता रोज
ओजस्वी जीवन मिले करो नए नित खोज
करो नए नित खोज खनकती रहे हव़ा में वाणी
'विधि' सम्मत सब काम करो तुम करना ना मनमानी
देते हैं आशीष निरंतर विधना हो अनुकूल
काँटों के आने से पहले पथ में बिखरे फूल
दिवा स्वप्न देखो नहीं भूल न होने पाए
करना न कोई काम कभी जो पीछे मन पछताए
आगे ईश्वर की कृपा बने निरंतर काम
इतने ऊँचे जा पहुँचो की दुनियाँ करे प्रणाम

ब्लॉग आर्काइव

मेरे बारे में