सोमवार, 25 जून 2012

स्वदेश 
उलीच गम को भींच आँखें खींच  सर  संधान कर 
तान लो धन्वा पुरानी हाथ रख लो म्यान पर 
चल पड़ो लेकर ध्वजा अब साज सज्जा साथ में 
बाँध लो सर पर कफ़न उसे मांग लो सौगात में ।।
आ गया तूफ़ान फिरंगी रूप ले व्यापार का 
डालता घेरा सुनहरा शर्त माया जाल का 
जाग जाओ चल पड़ो अब झेलने उस दंश को 
सामना कर कर के सम्हालो अब नहीं बिलम्ब हो 
आज न्रीप शत्रु बना है अपने हिन् संतान की 
घर के बर्तन बेच कर नहीं सोचता सम्मान की 
घर के अन्दर घर के बाहर हर तरफ जंजाल है 
ब्याध आया जाल लेकर हाल अब बेहाल है 
भ्रष्ट बन जब खेलते कभी सोचते हो देश का 
आने को है फिर गुलामी सोच उस संताप का 
स्वस्थ बन नहीं शोक कर सोचो नहीं जो कल किया 
चल पड़ो बन कर स्वदेशी राग अपना लो नया 
हे हिमालय सोच ऊँचा रहे मस्तक तेरा 
मत बहा आँसू निरंतर हिम जमने दे जरा 
आयेगा तेरा युधिष्ठिर छोड़ कर वह स्वर्ग को 
साथ में लाएगा अपने अनुज अर्जुन भीम को 
हे नरेश मत कर क्लेश तुम भी उठा लो व्रत नया 
मत बुला आहात जो कर दे भेद को समझो जरा 
आते हैं दामन को थामे बैठ जाते बज्र  बन 
बज्र का सीना बना लो कष्ट को श लेंगे हम 
अपने संसाधन सहेजो काम बनता जाएगा 
तोड़ दो जंजीर आर्थिक देश बढ़ता जाएगा ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में