शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

असमंजस में दिल्ली

जर्जर भवन बनी अब कांग्रेस हिलने लगे हैं खम्भे 

भ्रष्टाचारी  घास  उगे हैं कितने लम्बे लम्बे  ? 
टपक  रहा छत उखड़े प्लास्टर डर पैदा करते हैं 
करो  प्रार्थना   मिलकर सारे जय जननी जगदम्बे ।।
कड़ कड़ करते हैं किवाड़  जब उनको कोई खोले 
घर वाले बेखबर पड़े सब कितना कोई बोले 
उचल रहे कुछ चूहे चूं चूं खोद रहे जो जड़ को 
राजा बाजा बजा गए अब नैया डग मग डोले ।।
सारा कुनबा पडा उसी में क्या करे सोनियाँ गांधी ?
किया मरम्मत बार बार आशा की डोरी बाँधी  
लेकिन रिश्वत के छींटों नें किया दीवारें जर्जर 
ऊपर से दिग्विजय हमारे चले चलाने आंधी ।।
मनमोहन चुपचाप सदा से महिमा बड़ी निराली 
नीलकंठ बन  बैठे वे अब पीकर विष की प्याली 
कोलब्लाक आबंटन हो या टूजी  बड़ा घोटाला 
उनका तो कुछ हुआ नहीं पर अपना पॉकेट खाली ।।
तारनहार विचार किया तो मिल गई उनको माया 
आ बैठी उस छत के ऊपर लेकर भरकम काया 
बांध लिया एक और मुलायम हिलते डुलते खम्भे से 
भारत माता क्या कर लेगी कहाँ मिलेगी छाया ?
राहुल बाबा के कंधे पर टिका दिया है बल्ली 
एक हाथ में डंडा जिनके एक हाँथ में गिल्ली 
बोल रहे बडबोले जैसे आगम निगम न जाने 
कर्णधार कहते सब उनको असमंजस में दिल्ली ।।  

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरे बारे में